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हिन्दू मैरिज एक्ट में “कन्यादान” जरूरी नहीं है -

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 न्यायपालिका भी क्या हिंदू धर्म में 

सनातन काल से चल रही प्रथाओं को 

कुचलना चाहती है -

किसी ने 75 साल से क्यों नहीं कहा 

हिन्दू मैरिज एक्ट  में “कन्यादान” जरूरी नहीं है -

हिन्दू मैरिज एक्ट  में “कन्यादान” जरूरी नहीं है -


अभी 5 अप्रैल, 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की एकल खंडपीठ ने हिंदू धर्म में सनातन काल से चल रही विवाह में “कन्यादान” की प्रथा पर ही कैंची चला कर कह दिया कि विवाह संपन्न कराने के लिए हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 7 के तहत  यह रस्म अनिवार्य परंपरा नहीं है - 


हिन्दू मैरिज एक्ट हिंदुओं पर कुठाराघात करने के लिए जवाहर लाल नेहरू ने संसद से पास कराया था और कौन नहीं जानता कि भारतीय संस्कृति और सनातन रीति रिवाजों से नेहरू को सख्त नफरत थी - विगत में यह विषय शायद अन्य अदालतों में भी गया है लेकिन अब जिस तरह इलाहाबाद हाई कोर्ट ने “कन्यादान” को गैर-जरूरी बता दिया, उससे लगता है वे भी हिंदू परंपराओं को कुचलने को  आतुर हैं -


यह बात गौर करने की है कि हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में लागू हुआ और तब से लेकर अब तक 75 वर्ष में सुप्रीम कोर्ट ने “कन्यादान” पर ज्ञान नहीं पेला - जस्टिस विद्यार्थी ने अपने फैसले में कहा है कि सप्तपदी (अग्नि के चारों तरफ 7 फेरों और वचनों) की रस्म से विवाह संपन्न हो जाता है -और कन्यादान जरूरी नहीं है -


लेकिन IPC के section 497 को निरस्त करते हुए वर्तमान चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने तो वैवाहिक संबंधो को संबंध होते हुए भी ख़त्म कर दिया था जब उन्होंने कहा था -


Man is not owner of wife’s sexuality: 

‘She can make her own sexual choices’


इससे बड़ा सत्यानाश हिंदुत्व पर आधारित परिवारों में जीवन मूल्यों का हो नहीं सकता और अभी अगर ये मामला उनके पास जाता है तो क्या ज्ञान पेलेंगे कोई नहीं जानता -


हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 7 कहती है -


(1) A Hindu marriage may be solemnized in accordance with the customary rites and ceremonies of either party thereto; 

(2) Where such rites and ceremonies include the Saptapadi (that is, the taking of seven steps by the bridegroom and the bride jointly before the sacred fire), the marriage becomes complete and binding when the seventh step is taken.


इस धारा के दोनों खंड एक साथ भी पढ़े जा सकते हैं और अमल में लाए जा सकते हैं - खंड 2 में यदि सप्तपदी पूरा होने की बात की गई है तो कन्यादान की रस्म को विशेषतौर पर मना भी नहीं किया गया जबकि खंड 1 के अनुसार वह किसी एक पार्टी के Customary rites and ceremonies में शामिल है तो उसकी अनिवार्यता भी मान्य मानी जानी चाहिए -


इस दृष्टि से हाई कोर्ट का फैसला दोषपूर्ण लगता है -


ऐसी सब बातें न्यायपालिका हिंदू धार्मिक रीति रिवाजों के लिए बेधड़क करती है लेकिन अन्य धर्मों के Personal Laws पर बोलने से डर लगता है चाहे वे Laws किसी की हत्या करने की अनुमति ही क्यों न देते हों -


बॉलीवुड सबसे ज्यादा हिंदू धार्मिक रिवाज़ों का मज़ाक उड़ाता है - याद होगा आलिया भट्ट ने एक विज्ञापन में “कन्यादान” शब्द ही ख़त्म कर उसे नया रूप देकर “कन्यामान” कर दिया था -

गूगल सर्च में दम ठोक कर कह रहे हैं कि वेदों में “कन्यादान” का जिक्र नहीं है जबकि अथर्ववेद के 14 वें कांड में इसका वर्णन है -


भगवान राम सहित चारों भाइयों के विवाह के समय सीता सहित चारों बहनों का कन्यादान करना क्या राजा जनक की मूर्खता थी - सनातन काल से चली आ रही मान्यताओं को किसी कोर्ट के जज खारिज करने का कोई अधिकार नहीं रखते - 


हर बात पर कानून का चाबुक चलाने की कोशिश मत कीजिए - कल को हिंदू समाज के भ्रष्ट राजनीतिक लोग “कन्यादान” को बाल विवाह और सती प्रथा की तरह “कुप्रथा” बता कर तांडव कर देंगे और आपके कोर्ट के फैसले का  ज्ञान पेलते रहेंगे -



: एक बहुत बड़ा षड्यंत्र हिंदू यूनिटी के खिलाफ फेसबुक/ट्विटर पर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर चल रहा है। जिसके तहत लगभग हर जाति के नाम पर, सामाजिक योद्धा के नाम पर, और कई केस में न्यूट्रल नाम वाले लेकिन जातिवाद को बढ़ावा देने वाले अकाउंट बना के ग्रूम किए गए हैं। इन सब जातिवादी अकाउंट के पास 40 50  anonymous हैंडल्स का सपोर्ट और amplification है..


इनका खेल एक दूसरे की जाति को गाली देने और अपनी जाति को विक्टिम बताने से शुरू होता है..जैसे ही ये एक दूसरे की जाति से गाली गलौच करते हैं..वैसे ही इन्हीं के द्वारा दोनों जातियों के नाम पर बनाए अकाउंट आपस में कमेंट सेक्शन में लड़ना भिड़ना शुरू कर देते हैं...जिस खेल में अक्सर वो लोग फंस जाते हैं जो ये समझ ही नहीं पाते कि ये अकाउंट जो अचानक 2 साल में उगे हैं , जिन्होंने ट्वीट ही अभी 4 महीने पहले करना शुरू किया है वो क्यों इनकी जाति को गालियां दे रहे हैं।


इसके चलते एक और वर्ग फाल्स पर्सेप्शन क्रिएट कर लेता है कि फलां जाति तो मेरी जाति के खिलाफ है जबकि असल में ये दोनों संचालित  एक ही गिरोह द्वारा हो रहे हैं।


इस पूरे खेल में कुछ विदेश में बैठे लोग और बामसेफ की भूमिका बहुत ज्यादा संदिग्ध है।


चुनाव तो आता जाता रहेगा लेकिन समाज में इस विभाजन के प्रयास पर खास कर UP DGP हरियाणा DGP और राजस्थान DGP की नजर होनी चाहिए। 


जिस योजना को ISI सफलतापूर्वक पंजाब में एक्जीक्यूट करा ले गया है, एक दम सेम फुटप्रिंट अब इन राज्यों में ऑनलाइन दिखने लगा है।


बाकी आप सब भी सतर्क रहिए और ऐसे सारे अकाउंट्स पर नजर रखिए और यथासंभव आर्काइव लेने का प्रयास भी करते रहिए।


।। अनिल पंडित।।


🙏

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